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Thursday, May 9, 2013

कर्मों की चुभन 

बहुत बार या अधिकतर घर से बाहर जाते समय भी बाथरूम स्लिप्पर ही पहन कर बाहर निकल जाता  हूँ।असल में जूती टूट गई है ,और नई  मैंने ली नहीं।

काफी दिनों से चलते हुए  पाँव में ( कभी एक पाँव में और कभी दुसरे तो कभी-कभी दोनों में ) चुभन सी महसूस करता था , सोचता था कि  घर लौटकर , आराम से बैठकर देखूंगा कि ये चुभन कैसी है ?क्या है जो पांवों को चुभता रहता है ?  लेकिन फिर घर लौटने के बाद , चप्पल से पाँव बाहर निकल जाने के बाद , चुभन भी  दिमाग से निकल जाती थी।

लेकिन आज सुबह जब प्राणायाम और ध्यान  आदि के बाद बैठा था , तो यों ही कई प्रकार के सुन्दर-सुन्दर विचार मन -मंदिर में घुमड़ने लगे और फिर अचानक मेरा ध्यान चप्पल की ओर खिंचा।याद आ गई पैरों की चुभन और याद आया कई बार किया हुआ अपने से वादा।

अतः मैंने दोनों चप्पलों को उठाया और बारी-बारी से दोनों चप्पलों के तलुओं को बारीकी से जांचना शुरू किया।

मैंने पाया कि दोनों चप्पलों के तलुओं में छोटे-छोटे कील और कंकर अन्दर तक धंसे हुए थे। इन्हीं छोटी-छोटी कीलों और काँकरियों के नुकीले सिरे मेरे पावों  में चुभ रहे थे।

मैंने एक -एक कर के इन काँकरियों और कीलों को चप्पलों के तलुवों से निकालना शुरू किया। मैंने पाया कि रास्ते में आते-जाते चप्पल के तलुओं में लगी ये कंकरियाँ एवं कीलें इतनी अधिक अन्दर तक चप्पल के तलुवों में धंसी थीं कि  इन्हें चप्पल के तलुओं से निकालना आसान नहीं था , बल्कि बहुत ही मुश्किल काम था।लेकिन अब काम हाथ में लिया था तो पूरा तो करना ही था ,अतः एक-एक करके बड़ी मुश्किल से ये कंकरियाँ और कीलें चप्पल से निकाल पाया।बहुत अधिक मेहनत लगी और समय भी बहुत लगा , लेकिन अब मेरी चप्पलें सारी  कष्टदायक कीलों और काँकरियों से मुक्त थीं। मैंने सारी  काँकरियों और कीलों को समेटा और कूड़ेदान में डालकर उनसे छुटकारा पाया।

इन सब  काँकरियों  और कीलों को  फैंक कर जब मैं वापिस अपने शयनकक्ष में पहुंचा तो अचानक जैसे मुझे किसी ने मेरा कन्धा  पकड़ कर झकझोर दिया। कोई अदृश्य आवाज़ मुझे कुछ कहने लगी।मैंने ध्यान से सूना , तो मैंने पाया कि यह मेरी अपनी आत्मा की आवाज़ थी जो मुझे कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण बातें बता रही थी।

आत्मा का कहना था ,
                               
                                  "आज तूने इन चप्पलों पर ध्यान दिया तो तूने समझ लिया कि रास्ते में आते-जाते ना जाने कितने कील और कंकर इनके तलुवों में चुभते रहे थे और समय के साथ ये कीलें और कंकर चप्पल के तलुवों में अन्दर ही अन्दर बहुत गहरे धंसते चले गए , यहाँ तक कि ये पाँव में चुभने लगे , पाँव को कष्ट भी  देने लगे।पाँव में कष्ट होता रहा किन्तु तेरे आलस के कारण और तेरी लापरवाही के कारण इनकी वज़ह से हो रहा कष्ट बढ़ता ही गया।यदि तूने पहले ही इन पर ध्यान दे लिया होता तो ये कंकरियाँ और ये कीलें चप्पल के तलुओं में ज़्यादा भीतर तक नहीं धंसतीं और निकालने की कोशिश करने पर आसानी से और जल्दी निकाल फैंकी जा सकतीं। "

                                 " इन राहों पर तो रोज़ चलना है। अतः ये कीलें और कंकरियाँ भी रोज़ ही चुभा करेंगी।ज़रुरत है , इन्हें रोज़ के रोज़ चप्पल से , बिना ज़्यादा अन्दर धंसने  का मौका दिए  , निकाल फैंकने की ,ताकि चप्पल भी सुरक्षित रहे और पाँव को भी कष्ट ना हो।"

                                 " और फिर यही हाल तो हमारे जीवन का है , जीवन के सफ़र में ना जाने कितनी मीठी-कडवी घटनाओं से हमारा रोज़ वास्ता पड़ता है। इन मीठी कडवी यादों को हम अपने दिल में संजोये रखते हैं। हमें पता भी नहींचालता और ये यादें हमारे मन - बुद्धी - अहंकार को कचोटती रहती हैं।हम इनकी टीस की पीड़ा को
सहते रहते हैं , दुखी होते रहते हैं और इन यादों के  द्वारा दी जा रही टीसों को झेलते हुए  दुखों से भरा  जीवन दूसरों को कोसते हुए ढोते  चले जाते हैं।"

                                                        
                                   " ज़रूरत है इन मीठी -कडवी घटनाओं की यादों को मन से उखाड़ फैंकने की ताकि ये हमारे मन में अन्दर तक ना धंस पाएं , हमें दर्द की टीस में ना डुबो पाएं। और हम सुख पूर्वक जीवन जी सकें।"

                                   " अतः ज़रूरी है कि हम वर्तमान में जीना सीखें।"


                                   " ताकि कर्मों की चुभन से बच सकें।"
 

1 comment:

  1. I have written this blog spontaneously ,without reviewing my thoughts .

    therefore there is every possibility that you may find it childish .

    SO PL GIVE YOUR COMMENTS , WHATEVER THEY ARE .

    I WILL BE HAPPY TO NOTE THEM .

    ReplyDelete