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Tuesday, May 21, 2013

मैं और मेरा ये शरीर 

 बहुत विद्वान् एवम आध्यात्म की कई सीढियां चढ़ चुके मेरे एक बहुत पुराने मित्र , बहुत अधिक बीमार थे। बहुत दिन हो गए , किन्तु कोई इलाज फायदा पहुंचाता नज़र नहीं आ रहा था। बच्चे एक हस्पताल से दूसरे  हस्पताल , एक डाक्टर से दूसरे  डाक्टर के पास ,बाप को जल्द से जल्द स्वस्थ करने  के लिए , चक्कर लगा रहे थे। आज के हालात को देखते हुए , हम सब समझ सकते हैं कि खर्च भी  लाखों में हो रहा था , लेकिन खर्च की किसी को कोई चिन्ता  नहीं थी ,चिन्ता  थी तो केवल अपने  पिता के  स्वास्थ्य की।यह सब उनका अपने पिता के प्रति अत्याधिक प्रेम या अनुराग के ही कारण था ,ऐसा कह सकते हैं , क्योंकि उनके पिता की कोई ऐसी लम्बी-चौड़ी जायदाद भी नहीं थी कि जिसके लिए उन्हें कोई दिखावा करना ज़रूरी होता।

मुझे जब उनके अस्वस्थ होने का समाचार उनके बड़े पुत्र से मिला तो मैं भी उन्हें मिलने उनके घर गया। जब वो अस्पताल पहुंचे तो अस्पताल भी गया।जब तक वो होश में होते थे सब से केवल भगवत चर्चा ही करना चाहते थे , अपनी बिमारी की चर्चा करना बिलकुल भी पसंद नहीं करते थे , केवल हस्पताल में डाक्टर के पूछने पर बिमारी से सम्बंधित जवाब दे देते थे वरना केवल भजन ही सुनना पसंद करते थे।अतः उनकी धर्मपत्नी ने उनके बैड के पास सी डी प्लेयर लगा रखा था जिस पर धीमे-धीमे भजन बजते रहते थे और वो खुद वो भजन मन ही मन दोहराते रहते थे।

एक दिन जब मैं उनके पास बैठा था ,  उनकी छोटी बहिन अपने पति के साथ उनसे मिलने आ पहुंची।मेरे मित्र अपने सभी भाई-बहनों और अपने सभी इष्ट-मित्रों से हमेशा से बड़ा  स्नेहपूर्ण  व्यवहार करते थे ,किन्तु अपनी इस छोटी बहन से उनका कुछ अधिक ही लगाव था।जहां तक मेरा ख्याल है ये अतिरिक्त लगाव इस बहन की गहन धार्मिक सोच के ही कारण था।इस बहन का मन उस समय साठ वर्ष की उम्र में भी एक दम सरल था।

बहन अपने भाई की बिमारी से बिगड़ी हालत को देख कर बहुत दुखी हो उठी।सीधे जाकर भाई के जर्जर शरीर से लिपट कर रोने लगी। मैंने  देखा कि मेरे मित्र उस अवस्था में भी हलके से मुस्करा रहे थे।उन्होंने धीरे से अपना बायाँ हाथ छोटी बहन की पीठ पर पर रखा और  धीरे-धीरे सहलाने लगे।उनके दायें हाथ में ग्लूकोज़ की सुई लगी हुई थी।उनकी हालत को देखते हुए घर पर ही एक नर्स की देख-रेख में ग्लूकोज़ चढ़ाए रखने का प्रबन्ध किया गया था।कहीं ग्लूकोज़ की सुई चुभ ना जाए या हिल ना जाए इस डर से उसके पति उसे मित्र से अलग करने को आगे बढे , किन्तु मित्र महोदय ने अपने बहनोई को ऐसा करने से रोक दिया ,और धीरे-धीरे छोटी बहन की पीठ सहलाते रहे।जब बहन का मन हल्का हो गया तो वो सीधी होकर बैठ गयी।

जब बहन पानी पीकर स्वस्थ मन हो गई तो मित्र ने उसके बच्चों और उसके पोते-दोहते के बारे में पूछना शुरू  कर दिया।

बहन कहने लगी ,  ''वाह भाई साहब  , आप भी खूब हो , आई मैं हूँ आपका हाल जानने और अपना हाल बताने के बजाये आप मेरा और मेरे परिवार का ही हाल जानने में लग गए।"

मित्र बोले, " मैं बहुत प्रसन्न हूँ , न कोई काम ना कोई काज बस पड़े-पड़े भगवान् के भजन सुनता रहता हूँ , इससे बढ़िया और क्या होगा , अब तू आ गई है  तो और भी अधिक खुश  हूँ।"

बहन : " लेकिन आपका शरीर तो एकदम कमज़ोर हो गया है।"

मित्र :  " तो तू इस शरीर की बात कर रही है , मैं समझा मेरी बात कर रही है, अब अगर शरीर की बात करनी है तो अपनी भाभी से या अपने भतीजों से कर ।" कह कर मित्रवर आँख मूँद कर चुप कर गए। कुछ देर चुप रहने के बाद अपनी पत्नी से बोले ," इसे कुछ भोजन आदि कराओ सुबह -सुबह अपने घर से भूखी-प्यासी निकली होगी।" फिर अपने बहनोई से बोले , " आप भी आराम कीजिये सफ़र में थक गए होंगे।"
और ये कह कर करवट बदल कर लेट गए। यानी बात ख़त्म।

लेकिन उनकी बहन भी आखिर उनकी ही बहन थी। वो कहाँ यों उनका पीछा छोड़ने वाली थी ,बोली ," भैय्या , मैं अभी चाय नाश्ता लेकर फिर आपके पास आकर बैठूंगी , फिर आप मुझे यों ही नहीं टाल  पायेंगे।"

उन्हें इस प्रकार करवट लेकर बात ख़त्म करते देख मैं भी वहाँ से उठकर अपने घर लौट आना चाहता था , किन्तु मित्र की बहन का प्रेमपूर्ण आग्रह देख कर रुक गया , मन में एक जिज्ञासा हुई कि देखें , बहन को क्या जवाब देते हैं .। मैं हैरान भी था कि  एकदम चुप रहने वाला रोगी आज बात कर रहा था।

                                   ( मैं किसी का भी नाम जानबूझ कर नहीं लिख रहा हूँ )

मित्र की बहन भोजन आदि से निवृत होकर फिर भाई के पास आ बैठीं। इतने में उनके दोनों भतीजे भी डोक्टर के पास से रिपोर्ट आदि दिखा कर लौट आये।बुआ को आया देख मित्र के दोनों पुत्र बुआ से लिपट कर रो पड़े।अब सीन उलटा था , बुआ की बजाय उसके भतीजे रो रहे थे और बुआ उन्हें चुप करा रही थी।

( यहाँ यह भी बताता चलूँ कि दोनों पुत्र कोई छोटे बच्चे नहीं हैं , बड़ा 52 साल का और छोटा 48 साल का है। दोनों सफल कारोबारी हैं , जिन्होंने अपना कारोबार खुद अपने दमखम पर खडा किया है और जवान औलाद के बाप हैं , किन्तु पिता के मोह में एकदम बौखलाए पड़े हैं।)

बड़ा बेटा बुआ से बोला , " बहुत अच्छा किया बुआ जो आप आगईं ,बाबूजी को कुछ समझाइए , हमारी तो ये कुछ सुनते ही नहीं हैं , डाक्टर का कहना है कि ये ठीक ही नहीं होना चाहते , और जब तक ये खुद ठीक होना नहीं चाहेंगे , मेरी कोई दवा, कोई इलाज इन्हें ठीक नहीं कर सकता। "

" भाई ये तो सरासर इलज़ाम है , तुम लोग जो दवा देते हो खा लेता हूँ , जितने इंजेक्शन लगवाते हो चुपचाप लगवा लेता हूँ , ये लड़की मेरे सर पर दिन-रात ग्लूकोज़ चढाने को बैठा रखी है , मैंने कभी कोई ऐतराज़ नहीं किया इसपर भी अगर तुम लोग मुझसे शिकायत रखोगे तो ये तो मुझ पर सरासर ज्यादती ही होगी।"

बिमारी के इतने दिनों में मैंने आज पहली बार मित्र महोदय को इतनी बात करते सुना था।

" फिर डाक्टर क्यों ऐसा कह रहा है ? " बहन ने नया प्रश्न किया

" अरे डाक्टर तो ऐसा कहेगा ही , उसे पैसे चाहियें , और ये दोनों मेरे भोलेनाथ उसकी खूब जेब गरम करते जा रहे हैं।"

" देख लो बुआ , क्या कह रहे हैं बाबूजी , हम क्या यों ही मुफ्त में हस्पताल वालों को पैसे दे रहे है , आखिर बाबूजी का इलाज भी तो कराना है , ये तो यही चाहते हैं कि हम हाथ पर हाथ रख कर बैठ जाएँ ना इन्हें कोई दवा दें और ना ही इनका कोई इलाज कराएँ , आप ही बताओ बुआ , क्या ऐसा हो सकता है ? हमसे इनका कष्ट बिलकुल  नहीं देखा जाता ।" बड़ा पुत्र बड़े दुखी स्वर में बोला।

" बेटा , तुम बिना वजह ही परेशान हो रहे हो , मैं बहुत आनन्द में हूँ।"

" कैसी अजीब-अजीब बातें कर रहे हो भैय्या , आपका शरीर बिमारी के कारण सूख कर ढांचा मात्र रह गया है , डायबिटीज़ आपकी काबू नहीं आ रही , किडनी पर भी असर आने लगा है , लीवर सूज रहा है और आप कह रहे हैं की आप आनन्द में हैं।" बहन दुखी हो कर बोल उठी।

"इनकी यही सब बातें हम लोगों की समझ से बाहर हैं।" इस बार छोटा पुत्र बोला।

" अच्छा एक बात बता , तूनें अपनी नयी कार क्यों खरीदी ? " मित्र अपना पेट का दर्द छिपाने की कोशिश करते हुए अपने छोटे पुत्र से बोले।

" ये क्या बात हुई , बात आपके इलाज की हो रही है और आप नई  कार का ज़िक्र ले बैठे , पहले तो कभी आपने नई कार खरीदने पर अपना ऐतराज़ नहीं जताया और फिर गाडी तो आपकी सहमति से ही ली गई थी।" छोटा पुत्र बहुत परेशानी से बोला।

" तुम मुझे गलत समझ रहे हो , नई कार खरीदने से मुझे कोई ऐतराज़ ना पहले था और नाहीअब है , तुम इस बात को छोडो और मैंने जो पूछा उसका जवाब दो , तुमने नई कार क्यों खरीदी ? "

" क्योंकि पुरानी कार अब बहुत खराब हो चुकी थी। "

" लेकिन तेरा गैराज वाला तो हर बार उसे ठोक पीट कर चालू कर ही दिया करता था। " मित्र बोले।

" उसका क्या उसका तो काम ही है पुरानी से पुरानी गाडी को चालू कर देना , चाहे फिर कुछ दिन बाद फिर से कोई और बखेड़ा पैदा हुआ खडा हो।"

" यानी रोज़-रोज़ खराब हो जाने वाली उस पुरानी और नाकारा गाडी से तंग आकर तूने उस से अपना पीछा छुडाया और उस पुरानी गाडी की जगह नई गाडी ले आया।"

" तो फिर मुझे क्यों तंग कर रहे हो कि अपने इस पुराने वाहन को घसीटे जाऊं , मैं भी तो अपने लिए नयी गाडी चाहता हूँ। " मित्र एक बहुत ही क्षीण मुस्कुराहट के साथ बोले।

मैं एकदम सन्नाटे में आ गया।

सब मुंह बाए उनको ताके जा रहे थे।

फिर उनकी बहन बोल पड़ी ," पर भैया , आपका दर्द आपका कष्ट भी तो किसी से नहीं देखा जाता। "

" यही तो समझ का फेर है , कष्ट मुझे नहीं है , पुराने और जर्जर हो चुके इस शरीर को है जो मेरे अब किसी काम का नहीं रह गया है , ना मैं भगवान् का भजन कर पा रहा हूँ और ना ही इस नाकारा शरीर से किसी ज़रूरतमंद की कोई सेवा ही कर सकता हूँ। तुम लोग अपने दिल से यह वहम निकाल दो कि शरीर के कष्ट से मुझे कोई परेशानी है , जब तक मेरेआसपास  प्रभु नाम संकीर्तन चल रहा है मैं पूर्ण आनन्द में हूँ , शरीर के ये सब विकार इसके छूटने की तैय्यारी है। लेकिन नए - नए इलाज कर के तुम मेरा यह  पुराना शरीर छूटने  नहीं दे रहे , इतने दिन केवल तुम्हारे मन की ख़ुशी के लिए मैं चुप रहा हूँ ,तुम जो इलाज करते  रहे , करवाता रहा हूँ , लेकिन अब अगर तुम मेरी खुशी  चाहते हो तो ये सब बंद करवा दो, ताकि मेरा यह पुराना शरीर मझ से छूट सके और फिर मुझे एक और नया शरीर मिल सके । "

" लेकिन भैया , जब शरीर में कष्ट है तो आप कैसे आनन्द में हो सकते हैं ? "

" क्योंकि मैं यह शरीर नहीं हूँ , मैं तो अजर-अमर आत्मा हूँ जो शरीर की सहायता से अपनी जीवन यात्रा पूरी करता है। क्या गीता का उपदेश भूल गई ?

गीता मैंने कई बार पढ़ी है , गीता के ज्ञान से आनन्दित भी बहुत हुआ हूँ , लेकिन गीता के ज्ञान को सही मायने में कभी जी नहीं पाया ,यह बात मेरी समझ में आ गई और अपनी शर्मिन्दगी  में डूबा मैं चुपचाप वहाँ से उठकर अपने घर चला आया।

गीता के ज्ञान को  को इतने अच्छे तरीके से अपने जीवन में उतारने वाला व्यक्तित्व मैंने अपने 72 साल के जीवन में पहली बार देखा।

इति।


यह सच्चा वृत्तान्त पढ़ कर आप को कैसा लगा। आप के अमुल्य विचार जानकार मुझे बहुत ख़ुशी मिलेगी।
कृपया अपनी राय , चाहे वह कुछ भी हो , अवश्य लिखें। अग्रिम धन्यवाद।-उपेन्द्र








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