Search This Blog

Sunday, November 3, 2013

तमसो मा ज्योतिर्गमय
दीपावली यानि दीपों की लड़ी

यानि दीपमाला या प्रकाश
इतना प्रकाश कि अमावस्या की घोर अंधियारी रात को भी प्रकाशित कर दें।
लेकिन मैं कुछ और ही सोचता हूँ ,  कि घोर अन्धकार में तो मैं स्वयं हूँ।
मेरे मन में तो  क्रोध , लोभ  , अहंकार , ईर्षा मोह आदि के  न जाने कितने अंधियारे छाये हुए हैं
उपनिषद हमें कह रहा है ,-तमसो मा  ज्योतिर्गमय ( अन्धकार से निकलकर प्रकाश की ओर चलो )
वेदों में उपनिषदों में या पुराणों में मनुष्य मात्र को सद -मार्ग पर ले जाने के लिए इशारे किये गए हैं ,
तरह-तरह से , कहीं पूजा के तरीकों से तो कहीं कहानियों से तो कहीं धर्म का लाभ बताकर मानव को सही मार्ग पर ले जाने का प्रयत्न किया गया है।
अन्धकार से निकलना मेरा कर्तव्य है , प्रकाश कि ओर आगे बढ़ना मेरा कर्त्तव्य है।
बुरी आदतों को छोड़ना , अच्छी आदतों को अपने अन्दर पैदा करना .
अपने मन में छाये बुराईयों के अन्धकार को दूर करना और मानव मात्र के प्रति प्रेम कि ज्योति जगाना ,
एवं अपने मन में प्रेम , उत्साह और आनन्द कि अखण्ड ज्योति जगाना मेरा परम धर्म है।
मैं जितना निर्विकार बनूंगा ,जितना आनंद में रहूँगा उतने अधिक सटीक मेरे निर्णय होंगे।
 जितने सही मेरे फैसले होंगे उतनी अधिक मैं अपनी नौकरी या कारोबार में तर्रक्की करूंगा।
यानि लक्ष्मी भी मिलेगी , और जितना अधिक मैं आनंदित होऊँगा  जितना अधिक मेरा मन प्रकाशित होगा उतनी अधिकस्थिर लक्ष्मी मुझे प्राप्त होगी।
समाज में मेरा मान - सम्मान मेरा यश मेरे सद - गुणों से बढ़ेगा।
इसलिए मैंने यह नतीजा निकाला कि सबसे बड़ी दिवाली अपने मन के  दुर्गुणों रुपी अन्धकार को  दूर करके अपने मन में सद -गुणों कि दीपमाला प्रकाशित करना है .
यही आदि काल से प्रचलित सनातनधर्म का सन्देश है।

( मैंने जो ऊट-पटांग मन में आया लिख मारा। अब ये सब पढ़ने के बाद आप क्या सोचते हैं। मैं कितना सही हूँ ,कितना गलत इसका निर्णय आपने करना है। इसलिए केवल पढ़कर ना रह जाएँ अपनी प्रतिक्रया अवश्य लिखें। मुझे अच्छा लगेगा )-उ ना द

No comments:

Post a Comment